बुद्धि का भाल ही फोड़ दिया,
तर्कों के हाथ उजाड़ दिए
जम गए जाम हुए फंस गए
अपने ही कीचड़ में धस गए
विवेक बघार डाला स्वार्थॉ के तेल में
आदर्श खा गए
।
इन पंक्तियों के रचयिता गजानन माधव मुक्तिबोध हिन्दी
साहित्य युग प्रवर्तक रचनाकार हैं ।
’चांद का मुह टेढा है’, ‘भूरी भूरी खाक धूल’ जैसे काव्य संग्रह, ‘समूह से उठता आदमी’ कथा संग्रह, ‘विपात्र’ उपन्यास और ‘कामायनी एक पुनर्विचार’, ‘नई कविता का आत्म संघर्ष‘ जैसे आलोचना / समीक्षा ग्रंथ से हिन्दी साहित्य को समृद्ध
करने वाले मुक्तिबोध संकीर्णता से परे मनुष्यता को बचाये रखने का बोध कराते हैं ।
मुक्तिबोध कुछ समय के लिये आकाशवाणी से भी जुड़े रहे,
आपने नागपुर केन्द्र पर समाचार विभाग में सम्पादक का कार्य किया, किंतु बाद में
त्यागपत्र दे दिया ।
काल से मुक्त भाव को जगाते मुक्तिबोध पर हमें गर्व
है ।
योगदान - डा.
सुनील केशव देवधर sunilkdeodhar@gmail.com

YOU ARE PROUD OF MUKTIBODH AND WE ARE PROUD OF YOU AKASHVANI PUNE.
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